हर्ष नांगलिया, कवि
अलटू पालटू पलट पलट के बडा हुआ या छोटा
किसकी नैइया पार लगीं नफा हुआ या टोटा….
अलटू पलटू ,पलट गया” अलटू पलटू ,”पलट गया… गया”समझदार को सदा इशारा मूर्ख को क्या गीता ।
भालू की जब ताल लगे, मधु मुंह लगाकर पीता ।।
दाब पड़ी में कहां लुढ़क जाए बिन पेंदी का लोटा..अलटू पालटू पलट….
पैर की खिसकी जमी बचाले वो समझदार होते है।
दूजे को पतवार बनाए वही मझधार होते है।।
क्या सोने से नाम लिखोगे तख्ती पर मार लो घोटा…अलटू पालटू पलट….
राजनीति में स्वाभिमान का नाम पिटा देखो जी ।
अवसरवादी महत्वकांक्षी एक और छटा देखो जी ।।
राजतिलक पर बर्फी खाई थी या इमली का बूटा..अलटू पालटू पलट..
आरजेडी तो टेढ़ी हो गई चाचा चल दिए दिल्ली
चौथी बार फिर वही आ गए लोग उड़ाई खिल्ली
नेतागिरी का नहीं भरोसा क्या शुद्ध क्या खोटा…..अलटू